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घर में काम करने वाली पत्नियों की कीमत कामकाजी पतियों से बिल्कुल भी कम नहीं है। - सुप्रीम कोर्ट

 घर में काम करने वाली पत्नियों की कीमत कामकाजी पतियों से  बिल्कुल भी कम नहीं है। - सुप्रीम कोर्ट

#1

 नई दिल्ली
          कामकाजी पति अगर पत्नियों को यह सुनाते हों कि तुम घर में करती ही क्या हो? तो यह खबर उनके लिए है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि
घर में काम करने वाली पत्नियों की कीमत कामकाजी पतियों से बिल्कुल भी कम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि घर में काम करने वाली महिला पुरुषों की तुलना में ज्यादा और बिना पैसे के करती हैं काम। 

        #2

           जस्टिस की पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए एक जोड़े के रिश्तेदार का मुआवजा बढ़ाने का फैसला दिया। इस जोड़े की मौत दिल्ली में एक हादसे में हो गई थी, जब एक कार ने उनके स्कूटर को टक्कर मार दी थी।
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           कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी को मुआवजा बढ़ाने का दिया आदेश
पीठ ने मृतक के पिता को इंश्योरेंस कंपनी से मिलने वाली मुआवजे की 11.20 लाख की राशि को बढ़ाकर 33.20 लाख करने और इसपर मई 2014 से 9% ब्याज देने का फैसला सुनाया। जस्टिस ने शीर्ष अदालत के लता वाधवा केस में दिए गए फैसले को आगे बढ़ाते हुए यह फैसला दिया। 

          #4 

          दरअसल, 2001 में वाधवा केस में सुप्रीम कोर्ट ने मृतक महिला के घर में किए जाने वाले काम को आधार मानते हुए उसके परिजनों को मुआवजा देने का फैसला दिया था। महिला की एक समारोह में आग के कारण मौत हो गई थी।  

          #5

            जस्टिस ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार, करीब 16 करोड़ महिलाएं घरेलू कामकाज में व्यस्त हैं और यही उनका मुख्य व्यवसाय है। वहीं, केवल करीब 57 लाख के करीब पुरुष जनगणना में बतौर व्यवसाय घेरलू कामकाज लिखा है। जस्टिस ने अपने फैसले में हाल में नैशनल स्टैटिकल ऑफिस की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। 

            #6

            'टाइम यूज इन इंडिया 2019' नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि औसतन, महिलाएं एक दिन में करीब 299 मिनट घरेलू कामों में लगाती हैं और इसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है जबकि पुरुष औसतन 97 मिनट घरेलू काम में खर्च करते हैं।

          #7

             जस्टिस ने कहा कि इसी तरह एक दिन में महिलाएं घर के सदस्यों की देखभाल के कामों में 134 मिनट खर्च करती हैं जबकि पुरुष ऐसे कामों में केवल 76 मिनट ही खर्च करते हैं। अगर भारत में एक दिन में इन कामों पर खर्च किए गए कुल समय को जोड़े तो तस्वीर साफ हो जाती है।

           महिलाएं औसतन 16.9% बिना पैसे के लिए घरेलू कामकाज करती हैं जबकि 2.6% घर के सदस्यों की देखभाल में लगाती है। जबकि, पुरुषों का यही औसत 1.7% और 0.8% हो जाता है।  

        #8

             घरेलू कामकाज में पुरुषों की तुलना में महिलाएं बहुत आगे हैं,
उन्होंने कहा कि अगर किसी शख्स के घरेलू कामकाज के लिए लगाए जाने वाले समय की बात करें तो महिलाएं ही इसमे आगे हैं, वह कई तरह की घरेलू कामकाज को करती हैं। महिलाए पूरे परिवार के लिए खाना बनाती हैं, खाने-पीने के सामानों और अन्य घरेलू जरूरतों की चीजों की खरीदारी करती हैं।

         इसके अलावा घर को साफ रखने से लेकर उसके साज-सज्जा का ख्याल रखती हैं। बच्चों और बुजुर्गों की जरूरतों का ख्याल रखती हैं। घरेलू खर्चे को मैनेज करती हैं और ऐसे ही कई अन्य काम करती हैं। 

       #9

           जस्टिस ने कहा कि ग्राणीम इलाकों की महिलाए तो अक्सर खेती के कामों में भी मदद करती हैं। वे खेती की गतिविधियों से लेकर मवेशियों के खान-पान का भी ध्यान रखती हैं। उन्होंने कहा कि होममेकर का नैशनल इनकम फिक्स करना, उनकी कामों को मान्यता देना अहम होगा। महिलाएं चाहे अपनी पसंद से या फिर सामाजिक/सांस्कृतिक नियमों को तहत भले ही ऐसा करती हों लेकिन उनके कामों को पहचान देना जरूरी है। 

           पीठ ने कहा कि इससे साफ संकेत मिलता है और कोर्ट का भी मानना है कि घर में काम करने वाली महिलाओं के श्रम को पहचानना जरूरी है। उनके काम के जरिए घर की आर्थिक हालात को मजबूती मिलती है और देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। 

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