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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संपत्ति विवाद का मुकदमा 65 साल के बाद निपटा, जानें क्या है पूरा मामला

संपत्ति विवाद का मुकदमा 65 साल के बाद निपटा , जानें क्या है पूरा मामला ( Property dispute case settled after 65 years know what is the whole matter) --------       #1               कहावत है कि ‘ जहां चाह है वहां राह है ’, लेकिन कानून की दुनिया में जहां विल (वसीयत) है , वहां मुकदमा है। यह बात मद्रास के एक मामले में सही साबित हुई। जहां वसीयत के कारण 65 साल तक मुकदमा चला और अन्ततः सुप्रीम कोर्ट ने इसे शुक्रवार को विराम दे दिया। मामला 1955 में शुरू हुआ था।           लक्षमीया और रंगा नायडू आरवी नायडू के बेटे थे। रंगा की कोई संतान नहीं थी , जबकि लक्षमीया के चार पुत्र थे। रंगा के निधन के बाद परिवार में विवाद शुरू हुआ। भतीजों ने रंगा की पत्नी के खिलाफ जमीन के कब्जे के लिए सीआरपीसी की धारा 148 ( विल के आधार पर बंटवारा) के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दी। लखमिया ने भी पुत्रों के खिलाफ अर्जी दाखिल की। पुत्रों का कहना था कि चाचा मरने पहले वसीयत उनके लिए कर गए हैं कि जमीन उनकी रहेगी। ...

मृत्यु के बाद किराएदार के परिवार को मिलेगा संपत्ति पर अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला.

मृत्यु के बाद किराएदार के परिवार को मिलेगा संपत्ति पर अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला . #1  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृतक किराएदार के परिजनों से सबलेटिंग की दलील पर मकान खाली नहीं करवाया जा सकता है.          सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court)   ने एक अहम फैसले में कहा है कि किराएदार की मौत के बाद उसके परिवार को उसी किराएदारी के तहत संपत्ति में बने रहने का हक है. ये सबलेटिंग यानी उपकिराएदारी और किराएदार द्वारा उस संपत्ति को किसी तीसरे को किराए पर चढ़ा देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृतक किराएदार के परिजनों से सबलेटिंग की दलील पर मकान खाली नहीं करवाया जा सकता है.          बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ये व्यवस्था देते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें हाई कोर्ट ने एक किराएदार के परिवार को उपकिराएदार मानकर यूपी शहरी भवन (किराएदारी , किराया और खाली करने के विनियमन) एक्ट , 1972 की धारा 16(1) ( बी) के तहत मकान को खाली घोषित कर दिया था.       #2   ...

निःशुल्क कानूनी सहायता क्या है ?

निःशुल्क कानूनी सहायता -   #1 विधिक सेवाएँ प्राधिकरण अधिनियम ,1987   के अंतर्गत सभी   प्रकार के दीवानी और फौजदारी मुकदमों के लिए दी जाने   वाली सलाह एवं सहायता निःशुल्क कानूनी सहायता कहलाती   है। कानूनी सलाह सभी स्तर के व्यक्ति प्राप्त कर सकतें हैं और   विधिक सेवाएँं प्राधिकरण अधिनियम    के अनुसार योग्य   व्यक्ति   ही मुफ्त कानूनी सहायता सेवाएं प्राप्त कर सकतें हैं   विधिक सेवाएँ ं प्राधिकरण अधिनियम    के अनुसार   निम्नलिखित योग्य व्यक्ति ही मुफ्त कानूनी सहायता सेवाएँ     प्राप्त कर सकतें हैं   – ए)अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य। बी)मानव व्यापार या बेगार का शिकार व्यक्ति। सी)स्त्री   या बालक। डी)शारीरिक या मानसिक रुप से अस्वस्थ व्यक्ति। ई)विनाशकारी प्राकृतिक आपदा ,  साम्प्रदायिक दंगे ,    जातीय     अत्याचार ,  बाढ़ ,  सूखा ,  भूकंप ,  या औद्योगिक  संकट से प्रभावित   व्यक्ति। एफ)   औद्योगिक कर्मी। जी)जेल या संरक्षण गृह ...