कहीं भी जीरो FIR, 30 दिन में फैसला... समझें- नए कानूनों से
@कैसे तारीख पर तारीख से मिलेगी मुक्ति, समय पर मिल सकेगा न्यायभारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से प्रभावी हो गए हैं. इन कानूनों ने अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है. भारतीय दंड संहिता से लेकर भारतीय न्याय संहिता तक में बदलाव किए गए हैं. अब इलेक्ट्रानिक कम्युनिकेशन के जरिए सूचना दिए जाने पर भी FIR लिखी जा सकेगी. अगर ई-FIR दर्ज करवाई जाती है तो तीन दिन के भीकर पीड़ित को थाने जाना होगा.
@देश में तीनों नए आज यानी एक जुलाई से कानून लागू हो गए हैं. अब भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के तहत न्याय व्यवस्था आगे बढ़ेगी. नए कानून में डिजिटली साक्ष्य से लेकर
@ई-एफआईआर और फोरेंसिक लैब पर जोर दिया गया है. BNS के हर प्रावधान में समय-सीमा तय की गई है. एफआईआर से लेकर जांच, चार्जशीट और कोर्ट के फैसले तक के लिए समय-सीमा निर्धारित कर दी गई है. माना जा रहा है कि इससे ना सिर्फ पुलिस जांच में तेजी आएगी, बल्कि कोर्ट की कार्रवाई में भी तेजी आएगी और जल्द निर्णनए कानून के मुताबिक, कोर्ट को पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिन के अंदर आरोप तय करना होगा. अंतिम सुनवाई के बाद अधिकतम 45 दिन में फैसला सुनाना जरूरी किया गया है. जांच और फैसलों में तेजी के लिए अब ईमेल, मोबाइल मैसेज भी साक्ष्य के तौर पर स्वीकार किए जाएंगे. इससे कोर्ट में तारीख पे तारीख वाली स्थिति नहीं बनेगी और केस जल्दी निपटेंगे.
@न्यायिक सिस्टम में क्या बदलाव आएगा...
नए कानून में जीरो एफआईआर दर्ज कराने का प्रावधान शुरू किया गया है. अब किसी भी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकेगी और एफआईआर को 15 दिन के अंदर घटनास्थल वाले थाने में ट्रांसफर किया जाएगा. पहले घटनास्थल वाले थाने में ही एफआईआर दर्ज कराई जाती थी.
@- कोई भी नागरिक अपराध के सिलसिले में कहीं भी जीरो FIR दर्ज करा सकेगा. जांच के लिए मामले को संबंधित थाने में भेजा जाएगा. अगर जीरो एफआईआर ऐसे अपराध से जुड़ी है, जिसमें तीन से सात साल तक सजा का प्रावधान है तो फॉरेंसिक टीम से साक्ष्यों की जांच करवानी होगी.
@- फरियादी को एफआईआर और बयान से जुड़े दस्तावेज भी दिए जाने का प्रावधान किया गया है. फरियादी चाहे तो पुलिस द्वारा आरोपी से हुई पूछताछ के बिंदु भी ले सकता है. अब ई-सूचना से भी एफआईआर दर्ज हो सकेगी. हत्या, लूट या रेप जैसी गंभीर धाराओं में भी ई-एफआईआर हो सकेगी. वॉइस रिकॉर्डिंग से भी पुलिस को सूचना दे सकेंगे. E-FIR के मामले में फरियादी को तीन दिन के भीतर थाने पहुंचकर एफआईआर की कॉपी पर साइन करना जरूरी होंगे.
@- नए कानून में अभियुक्त को मौका मिलेगा कि वो मजिस्ट्रेट कोर्ट में चालान पेशी के 60 दिन के भीतर यह आवेदन कर सकता है कि केस चलने योग्य है या नहीं. पहले कोर्ट अपने विवेक का इस्तेमाल कर खुद तय करता था कि केस विचार करने योग्य है या नहीं.
@- FIR के 90 दिन के भीतर चार्जशीट चार्जशीट दाखिल करनी जरूरी होगी. कोर्ट में आरोप की पहली सुनवाई की तारीख से 60 दिन के अंदर आरोप तय करना अनिवार्य किया गया है. इसी तरह गवाह के संबंध में प्रावधान किया गया है कि वो वीडियो और ऑडियो के जरिए साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है. लोकसेवक के लिए ऑडियो-वीडियो साक्ष्य अनिवार्य किया गया है.
@- कोर्ट में जिस दिन सुनवाई समाप्त हो जाएगी, उस तारीख से 30 दिन के अंदर कोर्ट को जजमेंट यानी फैसला देना होगा. विशेष कारण से 15 दिन तक निर्णय टाला जा सकता है. यानी कोर्ट को 45 दिन में अपना निर्णय सुनाना अनिवार्य किया गया है. जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी.
@- पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा. ऑफलाइन और ऑनलाइन भी सूचना देनी होगी.
@- BNSS की धारा 86 में में अपराध से अर्जित संपत्ति के बारे में बताया गया है. यदि संपत्ति अपराध से अर्जित है तो उसे जब्त कर लिया जाएगा. फरार आरोपी की अनुपस्थिति में धारा 356 के तहत सुनवाई और सजा के निर्णय का प्रावधान किया गया है.पुलिस से लेकर कोर्ट तक... कितनी बदलेगी डिजिटली प्रोसेस
@7 साल सजा से जुड़े केस में अब फॉरेंसिक जांच अनिवार्य कर दी गई है. BNSS की धारा 176 में विवेचना की पूरी प्रक्रिया का पहली बार जिक्र किया गया है. FSL की टीम को मौके पर बुलाना और वीडियोग्राफी करना अनिवार्य किया गया है. ये किसी केस को सुलझाने में पुलिस की मदद कर सकता है. घर की तलाशी में भी वीडियोग्राफी अनिवार्य है. इसके अलावा, पुलिस ईमेल के जरिए समन भेज सकती है. या इसे वॉट्सऐप पर भी भेजा जा सकता है. आरोपी का पता, ईमेल एड्रेस और मोबाइल नंबर अदालतों के पास भी सेव रहेगा.
@इतना ही नहीं, एफआईआर से लेकर जांच और कोर्ट में बयान तक सारी प्रक्रिया में डिजिटल माध्यम का जोर रहेगा. ई-रिकॉर्ड, जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट भी डिजिटली होगी. रेप पीड़िता के ई-बयान भी दर्ज होंगे. गवाह, अभियुक्त और पीड़ित कोर्ट में वर्चुअली पेश हो सकेंगे. सीआरपीसी की धारा 144 (A) में प्रावधान था कि किसी भी धार्मिक या सामाजिक जुलूसों में हथियार लेकर निकलने पर कलेक्टर से अनुमति लेना जरूरी था, लेकिन नए कानून में इसे हटा दिया गया है.
रिमांड पर लेने की अवधि भी बढ़ी
@पुलिस अब 10 साल या इससे ज्यादा सजा वाले अपराध में आरोपी को पहले 60 दिन तक रिमांड पर ले सकेगी. अब तक प्रथम 15 दिन तक रिमांड लेने का प्रावधान था. 10 साल से कम सजा के मामलों में 40 दिन पुलिस रिमांड ले सकती है. पहले यह 15 दिन ही थी.
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