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परस्पर वसीयत’ (म्यूचूअल विल)

       परस्पर वसीयत (म्यूचूअल विल)

म्यूचूअल विल के किसी एक वसीयतकर्ता की मृत्यु और दूसरे वसीयतकर्ता के जीवनकाल में ही अंतिम लाभार्थी के अधिकार पूरी तरह स्पष्ट हैं

High Court Judgement on Mutual Will -Mutual Will comes into Effect on Death  of Either of the Joint Testators.

           दिल्ली हाईकोर्ट ने विक्रम बहल एवं अन्य बनाम सिद्धार्थ बहल मामले में हाल ही में सुनाये गये फैसले में व्यवस्था दी है कि परस्पर वसीयत (म्यूचूअल विल) की स्थिति में अंतिम लाभार्थी को उसका हक वसीयतकर्ताओं में से एक की मृत्यु तथा दूसरे के जीवनकाल में ही प्राप्त होगा।

        न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ ने इस मुकदमे में अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, “भारतीय कानून में यह स्पष्ट रूप से प्रतिस्थापित है कि म्यूचूअल विल का सिद्धांत दो वसीयतकर्ताओं में से एक की मौत के बाद प्रभावी होगा और जीवित वसीयतकर्ता पर भी बाध्यकारी होगा।

          मौजूदा मामले में, विंग कमांडर (स्वर्गीय) एन. एन. बहल और उनकी पत्नी श्रीमती सुंदरी बहल (बचाव पक्ष संख्या 2) ने 31 मार्च 2006 को संयुक्त वसीयत तैयार की थी। श्री एन. एन. बहल की मृत्यु पत्नी श्रीमती बहल से पहले हो गयी।

          वसीयत के उपबंधों के अनुसार, दंपती में से एक की मौत के बाद सम्पूर्ण प्रॉपर्टी दूसरे के पास सुरक्षित रहेगी और मृतक के हिस्से की सम्पत्ति में किसी का कोई हक नहीं होगा। दोनों वसीयतकर्ताओं की मृत्यु के बाद ही उनका बड़ा बेटा, पोती (बड़े बेटे की पुत्री) तथा छोटा बेटा उल्लेखित ब्योरे के अनुसार अपने-अपने हिस्से का पूर्णतया मालिक होगा।

      बड़े बेटे और उसकी बेटी ने एक याचिका दायर करके अन्य मांगों के साथ-साथ यह भी अनुरोध किया था कि कोर्ट उनकी मां एवं भाई को वसीयत में दर्ज उनके (वादियों के) हिस्से से बेदखल करने से रोकने का आदेश जारी करे। इस मुकदमे में कुछ मुद्दे सामने आये थे। कोर्ट के समक्ष मुख्य मुद्दे थे

(1)क्या 31 मार्च 2006 को तैयार किया गया अविवादित दस्तावेज म्यूचूअल विल की श्रेणी में आता है और यदि हां, तो उसका क्या असर होगा? तथा

(2) इस तरह की वसीयत पर हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 14(1) का प्रभाव क्या होगा

          वादियों के पक्ष में विस्तृत फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ ने कहा कि वसीयत के उपबंधों को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि कथित वसीयत में वसीयतकर्ताओं के बीच इस बात पर सहमति थी कि विवादित संपत्ति किस प्रकार वसीयत की जानी है।

           इस प्रकार वसीयतकर्ताओं के बीच स्पष्ट और सुनिश्चित सहमति थी, ऐसी स्थिति में भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 91 एवं 92 के परिप्रेक्ष्य में कोई मौखिक साक्ष्य की अनुमति का सवाल ही नहीं उठता है। 

         फैसले में आगे कहा गया है कि एकबारगी यदि ऐसे समझौते का पता चलता है और वसीयत यदि संयुक्त सम्पत्ति से संबंधित है, साथ ही वसीयतकर्ता संबंधित दस्तावेज से संतुष्ट हैं तो यह म्यूचूअल विल की श्रेणी में आता है।

         कथित वसीयत की शर्तों को स्वीकार करने और उसी आधार पर लाभ लेने के बाद श्रीमती संदरी एन. बहल अपने पति के साथ किये समझौते का उल्लंघन करके प्रॉपर्टी का सौदा नहीं कर सकतीं, क्योंकि वह समझौते से बंधी हुई हैं।

         कानून की आगे व्याख्या करते हुए यह व्यवस्था दी गयी कि “म्यूचूअल विल के किसी एक वसीयतकर्ता की मृत्यु और दूसरे वसीयतकर्ता के जीवनकाल में ही अंतिम लाभार्थी के अधिकार पूरी तरह स्पष्ट हैं” और लाभार्थी को अपने अधिकार हासिल करने के लिए दोनों वसीयतकर्ताओं की मृत्यु का इंतजार नहीं करना होता है।

        दूसरे मुद्दे के संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1956 की धारा 14(1) की व्यावहारिकता के लिए इस कानून के लागू होने की तारीख पर हिन्दू महिला द्वारा उस सम्पत्ति पर कब्जा आवश्यक है।

          यह भी व्यवस्था दी गयी कि हिन्दू महिला के लिए यह दलील देना अनिवार्य है कि विवादित प्रॉपर्टी उसे पहले से मौजूद अधिकारों के एवज में दी गयी थी, लेकिन मौजूदा मामले में श्रीमती सुंदरी बहल ने ऐसी कोई दलील नहीं दी थी, इसलिए वह हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 14(1) के तहत विवादित सम्पत्ति पर अपना सम्पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकती हैं।

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