कोर्ट मैरिज के लिए 30 दिन का नोटिस प्रकाशित करना
जरूरी नही है घर पर नोटिस भेजना क्यों जरूरी है?
इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला
@भारत में अभी कोर्ट मैरिज को या कोर्ट मैरिज करने
वालों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता । और इसका सबसे
बड़ा कारण है भारत में लोगों की यह मान्यता की कोर्ट मैरिज
सिर्फ वही लोग करते हैं जो घर से भागते हैं या फिर जिनकी
मैरिज इंटर कास्ट होती है ।
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@ऐसे में इलाहाबाद हाई कोर्ट का जजमेंट और भी अहम
हो जाता है जिस में फैसला सुनाते हुए यह माना कि स्पेशल
मैरिज एक्ट1954 की धारा 6 के तहत नोटिस पब्लिश करना
और धारा 7 के तहत उस शादी पर किसी तरह की आपत्ति
को आमंत्रित करना निजता के अधिकार का उल्लंघन
होता है ।
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@होता यूं है कि जब कोई कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन
करता है तो कोर्ट मैरिज के लिए 30 दिन का समय दिया
जाता है । इस बीच रजिस्ट्रार के ऑफिस के बाहर एक
नोटिस पब्लिश करके लगा दिया जाता है । जिसमें अगर
किसी को उन दोनों की मैरिज से कोई भी प्रॉब्लम हो तो
वह अपनी आपत्ति को जाहिर करके शादी को रुकवा
सकता है ।
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@जस्टिस ने कहा कि,इस तरह के नोटिस की कोई
जरूरत नहीं होती ।क्योंकि यह व्यक्ति के स्वतंत्रता और
निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं । उन्हें
पूरी तरह से खत्म करते हैं । कोर्ट ने कहा कि स्पेशल
मैरिज एक्ट1954 की धारा 5 के तहत शादी करने वाला
जोड़ा लिखित रूप में विवाह अधिकारी को यह बताएंगे कि
इस तरह का नोटिस लगाना चाहिए या फिर नहीं । अगर
दोनों पक्ष ऐसा नोटिस लगाने से मना करते हैं तो अधिकारी
इस तरह के नोटिस को प्रकाशित नहीं करेगा और आगे
की प्रोसीजर को फॉलो करेगा ।
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@लेकिन अधिकारी को यह अधिकार है कि वह दोनों
पक्षों की जांच पड़ताल करें जैसे – उनकी पहचान करना,
उम्र का पता करना, लीगल सहमति है या नहीं जैसी बातों से
पूरी तरह से संतुष्ट ना होने पर उनमें प्रमाण पत्रों की मांग भी
कर सकता है ।
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@ अब क्या था मामला?
कोर्ट मे एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की
गई थी । आरोप था कि एक लड़की अपने प्रेमी से शादी
करने जा रही थी । इस वजह से उसे हिरासत में लिया
गया है । दोनों अलग धर्मों से संबंधित हैं । उन्होंने कोर्ट
के सामने यह कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट1954 के तहत
वह शादी करना चाहते हैं । पर30 दिन के नोटिस की
वजह से उनकी शादी में बहुत सारे लोग आपत्ति जाहिर
करेंगे । जिसकी वजह से उनकी शादी रुक जाएगी ।
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@उन्होंने कहा कि इस तरह का नोटिस निजता के अधिकार
का उल्लंघन है । इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए की
कोर्ट में इस तरह का फैसला सुनाया और कहा कि किसी
भी व्यक्तिगत कानून के तहत इस तरह के विवाह के लिए
किसी भी तरह के नोटिस को प्रकाशन या आपत्ति को
आमंत्रित करने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती ।
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