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तलाक की डिक्री कब और कैसे मिलती है ? पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद

 How to Get Decree of Divorce in India

 भारत में तलाक की डिक्री कब और कैसे मिलती है

#1

                विवाह विच्छेद के लिए तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) प्राप्त करने के लिए विवाह के पश्चात न्यायालय में कब याचिका पेश की जाती है? क्या निर्धारित समय के पहले भी ऐसी याचिका पेश की जा सकती है ? 

इन्ही सब सवालो के जवाब मिलेंगे।


#2   

                 हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 (Hindu Marriage Act 1976) के अनुसार विवाह की तिथि से 1 वर्ष के भीतर विवाह विच्छेद यानि की तलाक ये डाइवोर्स के लिए कोई याचिका प्रस्तुत नहीं की जा सकती है। पहले में यह अवधि 3 वर्ष की थी। परंतु 1976 में लाए गए संशोधन के अनुसार इस अवधि को 1 वर्ष कर दिया गया है।

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  #3 

        क्या निर्धारित समय के पहले भी ऐसी याचिका तलाक (Decree of Divorce) के लिए पेश की जा सकती हैं ?
     यदि याची द्वारा असाधारण कष्ट भोगा जाता है,  तो अपवाद स्वरूप समय से पूर्व भी (Decree of Divorce) तलाक की याचिका दायर की जा सकती है। इसके लिए न्यायालय से आज्ञा लेना आवश्यक होगा। किंतु यदि न्यायालय की याचिका की सुनवाई में यह प्रतीत होता है, कि याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति किसी मिथ्या व्यापदेशन अथवा मामले को छिपाकर प्राप्त की थी। 

    #4 

         तो उस दशा में न्यायालय यदि (Decree of Divorce) डाइवोर्स डिक्री पास करता है, तो वह शर्त लगा सकता है, कि डिक्री विवाह की तिथि से 1 वर्ष बीत जाने से पहले प्रभावशाली ना हो, अथवा न्यायालय याचिका को खारिज करता है। तो 1 वर्ष बीत जाने के पश्चात प्रस्तुत की जाने वाली तलाक की याचिका पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी। और 1 वर्ष के बाद दूसरी याचिका खारिज की गई याचिका के आधार पर ही अथवा सारभूत रूप से उन्हीं आधारों पर लाई जा सकेगी।

      #5 

         यहां यह भी प्रावधान है, कि विवाह ख़तम करने की किसी भी याचिका पर अपना कोई निर्णय देने से पूर्व न्यायालय याची एवं   प्रत्युत्तरदाता के बच्चों के हितों को दृष्टिगत अथवा ध्यान में रखते हुए 1 वर्ष पूर्ण होने से पूर्व दोनों के मेल मिलाप की संभावनाओं पर भी विचार करेगा।

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सुप्रीम कोर्ट

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अधिनियम 1956
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    #6  

          मेघनाथ बनाम सुशीला के केस में माननीय न्यायाधीश ने यह कहा, कि धारा 14 इस प्रकार के नियंत्रण को इस कारण प्रदान करती है, जिससे विवाह के पक्षकार जल्दबाजी में बिना आगा पीछा, सोचे समझे, विवाह विच्छेद के लिए विधिक कार्यवाहिओं के लिए अग्रसर ना हो विवाह  विच्छेद के आधार जनहित की दृष्टि से बनाए गए है। विवाह सामाजिक जीवन का स्तंभ है। किसी भी देश की विधियां तथा विधान उसके नागरिकों के लिए इतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितना कि विवाह संबंधी विषयों को सन्नियमित करने वाली विधियां अथवा कानून है।।

#7

पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद – 

(Decree of Divorce by Mutual Consent)
         विवाह विधि अधिनियम 1976 की धारा 13 (ख) 

( Marriage Laws (Amendment) Act, 1976) के अनुसार इस अधिनियम के उपबंधुओं के अंतर्गत या दोनों पक्ष कार पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री  द्वारा विवाह के विघटन के लिए याचिका जिला न्यायालय में चाहे जिस विधि से हुआ हो , विवाह विधि संशोधन अधिनियम 1976 (Marriage Law Act 1976) के प्रारंभ के पूर्व अनुष्ठापित किया गया हो, चाहे उसके पश्चात इस आधार पर पेश कर सकेंगे। कि वे 1 वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं, और वे एक साथ नहीं रह सकते हैं , तथा वे इस शर्त के लिए पारस्पर सहमत हो गए हैं।,कि विवाह विघटित कर देना चाहिए।

    #8

           विवाह विधि अधिनियम 1976 की धारा 11 (ख) ( Marriage Laws (Amendment) Act, 1976) उपधारा एक में निर्दिष्ट याचिका के उपस्थिति तारीख से 6 माह के पश्चात और 18 माह के भीतर दोनों पक्षकारों द्वारा किए गए प्रस्ताव पर यदि इसी बीच याचिका वापस नहीं ले ली गई हो, तो न्यायालय पक्षकारों को सुनने के पश्चात और ऐसी जांच जैसी वह ठीक समझे। यह घोषणा करने के पश्चात और अपना यह समाधान कर लेने के पश्चात की विवाह अनुष्ठापित हुआ है, और याचिका में कहे गए कथन ठीक है , यह घोषणा करने वाले डिक्री पारित करेगा, कि विवाह डिक्री की तारीख में विघटित हो जाएगा।

    #9

              संशोधन अधिनियम 1976 के अंतर्गत धारा 13 (क) ( Marriage Laws (Amendment) Act, 1976) द्वारा जो परिवर्तन किया गया है, वह इस प्रकार है- ” यदि विवाह विच्छेद की याचिका दायर की गई है, तो धारा 13 के अधीन कई धर्म परिवर्तन संसार पर त्याग तथा प्रकल्पित मृत्यु के आधारों को छोड़कर यदि न्यायालय याचिका के प्रकथन से संतुष्ट हैं, तो विवाह विच्छेद के स्थान पर न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित कर सकता है। 

#10        

     विवाह विच्छेद प्राप्त व्यक्ति कब पुनर्विवाह कर सकते हैं?
विवाह विच्छेद की डिक्री पारित होने के तुरंत बाद कोई भी पक्षकार तुरंत ही पुनर्विवाह करने का अधिकारी नहीं होता। अतः इस प्रकार विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो जाने पर विवाह के पक्षकार पुनर्विवाह कर सकते हैं,। यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी हो गई है-
1- जबकि विवाह विच्छेद की डिक्री द्वारा विवाह भंग कर दिया गया है, और उसे डिग्री के विरुद्ध अपील करने का कोई अधिकार है, अंतिम अपीलीय न्यायालय द्वारा पहले विवाह विच्छेद की डिक्री देने पर उसके डिग्री के विरुद्ध अपील करने का अधिकारी नहीं रहता है
2– यदि विवाह विच्छेद की डिक्री के विरुद्ध अपील करने का अधिकारी है, तो अपील प्रस्तुत करने की अवधि बिना अपील प्रस्तुत किए समाप्त हो गई है।
3- यदि अपील की गई है, तो वह खारिज हो गई है।

            इस प्रकार विवाह विच्छेद की याचिका की सुनवाई अंतिम रूप से समाप्त हो जाने पर ही पक्षकारों को पुनर्विवाह करने का अधिकार है।
व्यख्या- विवाह विच्छेद की डिक्री (Decree of Divorce) प्राप्त होने के पश्चात पक्षकारों को तुरंत ही पुनर्विवाह करने का अधिकार नहीं है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 15 विवाह विच्छेद प्राप्त व्यक्तियों के पुनः विवाह के संबंध में उपबंधित है, 

#11      

  यह धारा कहती है- कि जबकि विवाह विच्छेद की डिक्री (Decree of Divorce) द्वारा विवाह विघटित कर दिया हो, और या तो डिक्री के विरुद्ध अपील करने के समय कोई अपील उपस्थित हुए बिना अवधान हो गया हो, या अपील की गई हो, किंतु खारिज कर दी गई हो, पर विवाह के किसी पक्षकार के लिए पुनर्विवाह करना विधि पूर्ण ना होगा।

परंतु उन्हीं पक्षकारों के लिए पुनर्विवाह करना तब तक विधि पूर्ण होगा, जब तक कि ऐसे विवाह की तारीख तक प्रथम बार के न्यायालय में हुई, डिक्री से कम से कम 1 वर्ष बीत ना गया हो,
     1976 के संशोधन से धारा 15 के परंतु को अब समाप्त कर दिया गया है। जिसमें यह शर्त थी, कि पक्षकारों के लिए पुनर्विवाह करना, तब तक विधि पूर्ण ना होगा ।  जब तक कि ऐसे विवाह की तारीख तक प्रथम बार में न्यायालय में हुई डिक्री से कम से कम 1 वर्ष ना बीत गया हो 

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