सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, आपसी सहमति तलाक़, 6 महीने की कूलिंग ऑफ पीरियड की अनिवार्यता नहीं
'Mutual Divorce and Cooling Period"
#1
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि जब हिंदू पति-पत्नी के बीच रिश्ते सुधरने की जरा भी गुंजाइश न रह जाए तो दोनों की आपसी सहमति से तुरंत तलाक की इजाजत दी जा सकती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामले में आपसी सहमति से दी गई अर्जी के बाद छह महीने की कूलिंग ऑफ पीरियड की अनिवार्यता को भी खत्म किया जा सकता है।
#2
न्यायमूर्ति की पीठ ने छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड की कानूनी बाध्यता को हटाते हुए कहा कि उद्देश्य विहीन शादी को लंबा खिंचने और दोनों पक्षों की पीड़ा बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है।
#3
हालांकि वैवाहिक संबंध बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए लेकिन जब दोनों पक्षों पर इसका कोई असर न हो तो उन्हें नया जीवन शुरू करने का विकल्प देना ही बेहतर होगा।
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#4
पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-13 बी (2) में वर्णित छह महीने की कूलिंग ऑफ पीरियड अनिवार्य नहीं है बल्कि यह एक निर्देशिका है।
#5
ऐसे मामलों के साक्ष्य और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए अदालत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है।’ हालांकि अदालत को यह भी लगना चाहिए दोनों पक्षों के बीच सुलह के तनिक भी आसार नहीं है।
#6
सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए कुछ शर्तें निर्धारित की है किस तरह आपसी सहमति पर तलाक की अर्जी दायर करने के एक हफ्ते बाद कूलिंग ऑफ पीरियड को खत्म करने का आवेदन दाखिल किया जा सकता है।
नियम के मुताबिक, पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक
की अर्जी तब दाखिल कर सकते हैं जब वे एक वर्ष से
अलग रह रहे हों। पीठ ने कहा है कि एक वर्ष बाद
तलाक की अर्जी दी जाती है और इसके बाद सुलह के
सभी प्रयास विफल रह जाते हैं तो दोनों पक्ष बच्चों की
कस्टडी, निर्वाह वहन आदि मामला सुलझ चुका हो तो
तलाक में देरी का कोई कारण नहीं है।
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