सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आपातकाल (Emergency) क्या है इसे क्यों और कब लगाया जाता है |

आपातकाल क्या है इसे क्यों और कब लगाया जाता है

Emergency.
आपातकाल क्या है इसे क्यों और कब लगाया जाता है |
किन हालातों में लागू हो सकता है आपातकाल,क्या होते हैं            इसके प्रभाव?

#1
भारत के संविधान में आपातकालीन प्रावधान जर्मनी के संविधान 

 से लिए गए हैं.    

#2 

भारतीय संविधान में तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान है.
भारत में आपातकाल के प्रकार (Types of Emergency in India)

राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी)

राष्ट्रपति शासन (स्टेट इमरजेंसी)

आर्थिक आपातकाल (इकनॉमिक इमरजेंसी)

#3  

आपातकाल क्या होता है?

 The President can declare three types of  emergencies — national, state and   financial emergency.

National emergency under Article 352.

State emergency also called as President Rule, under Article 356.

financial emergency. Article 360 in The Constitution Of India.                        
44 साल पहले जिन लोगों ने आपातकाल का दौर देखा, वही उस दौर के दर्द को समझ सकते हैं. लेकिन उस दौर के बारे में हमारे जेहन में कुछ सवाल उठते हैं. मसलन

#4

आपातकाल होता क्या हैक्यों लगाया जाता है

इसके प्रभाव क्या होते हैं

 'आपातकाल' होता क्या है?

आपातकाल भारतीय संविधान में एक ऐसा प्रावधान है, जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है, जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है.बता दें कि भारतीय संविधान में जिन तीन आपात स्थितियों का जिक्र किया गया है, उनमें से आर्थिक आपात को छोड़कर बाकी दोनों लागू हो चुके हैं.

#5

आपातकाल की जरूरत क्यों है?
संविधान निर्माताओं ने आपातकाल जैसी स्थिति की कल्पना ऐसे वक्त को ध्यान में रखकर की थी, जिसमें देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में हो. इसी को ध्यान में रखकर कुछ ऐसे प्रावधान बनाए गए, जिसके तहत केंद्र सरकार बिना किसी रोक टोक के गंभीर फैसले ले सके.
उदाहरण के लिए अगर कोई पड़ोसी देश हम पर हमला करता है, तो हमारी सरकार को जवाबी हमले के लिए संसद में किसी भी तरह का बिल पास कराना पड़े. चूंकि हमारे देश में संसदीय लोकतंत्र है, इसलिए हमारे देश को किसी भी देश से युद्ध करने के लिए पहले संसद में बिल पास कराना होता है. लेकिन आपात स्थितियों के लिए संविधान में ऐसे प्रावधान हैं, जिसके तहत केंद्र सरकार के पास ज्यादा शक्तियां जाती हैं और केंद्र सरकार अपने हिसाब से फैसले लेने में समर्थ हो जाती है. केंद्र सरकार को शक्तियां देश को आपातकालीन स्थिति से बाहर निकालने के लिए मिलती हैं.

#6

राष्ट्रीय आपातकाल किसे कहते हैं?

(WhatisNationalEmergency)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल का प्रावधान है. राष्ट्रीय आपातकाल उस स्थिति में 

 लगाया जाता है जब पूरे देश को या इसके किसी भाग की सुरक्षा को   युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशक्त विद्रोह के कारण 

खतरा  उत्पन्न हो जाता है. भारत में पहला राष्ट्रीय आपातकाल         इंदिरा गाँधी  की सरकार ने 25 जून 1975 को घोषित किया था    और यह 21 महीनों तक चला था.

#7

1. नेशनल इमरजेंसी (अनुच्छेद 352)
देश में नेशनल इमरजेंसी का ऐलान विकट परिस्थितियों में किया जा सकता है. इसका ऐलान युद्ध, बाहरी आक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर किया जा सकता है. आपातकाल के दौरान सरकार के पास तो असीमित अधिकार हो जाते हैं, जिसका इस्तेमाल वह किसी भी रूप में कर सकती है, लेकिन आम नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं. नेशनल इमरजेंसी को कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है.
इस आपातकाल के दौरान संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 खुद--खुद निलंबित हो जाता है. लेकिन इस दौरान अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 अस्तित्व में बने रहते हैं.

#8

2. राष्ट्रपति शासन या स्टेट इमरजेंसी (अनुच्छेद 356)
संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन राज्य में राजनीतिक संकट को देखते हुए संबंधित राज्य में राष्ट्रपति आपात स्थिति का ऐलान कर सकते हैं. जब किसी राज्य की राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाती है या राज्य, केंद्र की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ हो जाता है, तो इस स्थिति में ही राष्ट्रपति शासन लागू होता है.
इस स्थिति में राज्य के सिर्फ न्यायिक कार्यों को छोड़कर केंद्र सारे राज्य प्रशासन अधिकार अपने हाथों में ले लेता है. कुछ संशोधनों के साथ इसकी सीमा कम से कम 2 महीने और ज्यादा से ज्यादा 3 साल तक हो सकती है. आमतौर पर जब राज्य सरकारें संविधान के मुताबिक सरकार चलाने में विफल हो जाती हैं, तो केंद्र की सिफारिश पर राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर देते हैं.
#9

3. आर्थिक आपात (अनुच्छेद 360)
वैसे तो देश में अब तक आर्थिक आपातकाल लागू नहीं हुआ है. लेकिन संविधान में इसे अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है. अनुच्छेद 360 के तहत आर्थिक आपात की घोषणा राष्ट्रपति उस वक्त कर सकते हैं, जब उन्हें लगे कि देश में ऐसा आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व  को खतरा है.
अगर देश में कभी आर्थिक संकट जैसे विषम हालात पैदा होते हैं और  भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर जाती है, तब इस आर्थिक आपात के अनुच्छेद का इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसी आपात स्थिति में आम नागरिकों के पैसों और संपत्ति पर देश का अधिकार हो जाएगा.

#10
आइये अब डिटेल में जानते हैं कि आखिर वित्तीय आपातकाल क्या  

होता है?

 वित्तीय आपातकाल की घोषणा कब और किसके द्वारा की जाती है?

 (WhocandeclareFinancialEmergency)

अनुच्छेद 360, राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का  अधिकार देता है. यदि राष्ट्रपति संतुष्ट है कि देश में  ऐसी स्थिति उत्पन्न  हो गई है जिसके कारण भारत की वित्तीय स्थिरताभारत की साख या  उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता को    खतरा है, तो वह केंद्र की सलाह पर वित्तीय आपातकाल की           घोषणा कर सकता है.  यह ध्यान रहे कि 1978 के 44 वें संविधान  संशोधन अधिनियम  में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति की  ‘संतुष्टि’ न्यायिक समीक्षा  से परे नहीं है, अर्थात सुप्रीम कोर्ट इसकी  समीक्षा कर सकता है.  

#11

वित्तीय आपातकाल कैसे और कब तक के लिए लगाया जाता है  

(Parliamentary Approval and Duration of the Financial Emergency) 

जिस दिन राष्ट्रपति, वित्तीय आपातकाल की घोषणा  करता है उसके दो  माह के अंदर ही इसको संसद के दोनों सदनों द्वारा  अनुमोदित किया  जाना चाहिए. वित्तीय आपातकाल की घोषणा को  मंजूरी देने वाले  प्रस्ताव को संसद के किसी भी सदन द्वारा केवल एक साधारण बहुमत  द्वारा पारित किया  जा सकता है.एक बार संसद के  दोनों    सदनों द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद, वित्तीय आपातकाल      अनिश्चित काल तक जारी रहता है, जब तक कि इसे राष्ट्रपति द्वारा  हटाया नहीं जाता है. इसके दो प्रावधान है;

a.  इसके संचालन के लिए कोई अधिकतम अवधि निर्धारित नहीं है;   और       

b. इसकी निरंतरता के लिए बारबार संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है.वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा को राष्ट्रपति द्वारा बाद में किसी भी समय रद्द  किया जा सकता है. इस तरह की उद्घोषणा को संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है

#12

वित्तीय आपातकाल के प्रभाव                   

(Effects of Financial  Emergency)

1. वित्तीय आपातकाल के दौरान केंद्र के कार्यकारी अधिकार का  

विस्तार हो जाता है और वह किसी भी राज्य को अपने हिसाब से  

वित्तीय आदेश दे सकता है. 

2. राज्य की विधायिका द्वारा पारित होनेकेबाद राष्ट्रपति के विचार  

के लिए आये सभी धन विधेयकों या अन्यवित्तीय बिलों को रिज़र्व 

 रखा जा सकता है. 

3. राज्य में नौकरी करने वाले सभी व्यक्तियों या वर्गों के वेतन और  भत्ते में कमी की  जा सकती है.

4. राष्ट्रपति,  निम्न व्यक्तियों के वेतन एवं  भत्तों में  कमी करने का निर्देश जारी कर सकता है;  

a. संघ की सेवा करने वाले सभी व्यक्तियों या किसी भी वर्ग के लोग

 b. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश.इस प्रकार,   वित्तीय आपातकाल के संचालन के दौरान केंद्र; वित्तीय मामलों में   राज्यों  पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है जो कि राज्य की वित्तीय  

संप्रभुता के लिए खतरे वाली स्थिति होती है.इससे पहले भारत में 

 1991 गंभीर वित्तीय संकट उत्पन्न हुआ  लेकिन फिर भी वित्तीय  

आपातकाल (Financial Emergency) की घोषणा नहीं की गई थी.

#13

Emergency Provisions: Article 352, 356, 360--

1)As per the articles 352, 356 and 360 in the Constitution of India, President of India have been given extraordinary power to declare an emergency to meet any threat to the country. Those powers to President of India in Constitution are called emergency provisions.

#14

National Emergency (Article 352):If the president of the state is not satisfied with a grave emergency exists whereby the security of India or any part is threatened whether by war or external aggression or an armed rebellion, then he may proclaim a state of national emergency for the whole of India or a part of India. Such a proclamation of emergency may be revoked by the president subsequently. The proclamation of emergency made under article 352 may be subjected to the judicial review and its constitutionally can be questioned in a court of law on the grounds of malafide. The proclamation made must be approved by both the houses of parliament within one month after the proclamation.The effect of the proclamation of emergency is the emergence of the full-fledged Unitary Government.

#15

State Emergency (Article 356):Article 356 provides that if the President, on receipt of a report from the Government of a state or otherwise, is satisfied that a situation has arisen in which the Government of the State cannot be carried on by the provisions of the Constitution, the President may issue a proclamation. By that proclamation, the president may assume to himself all or any of the powers vested in the Governor and may declare that the powers of the legislature of the State shall be exercisable by the Parliament. The proclamation issued under Article 356 must be laid before each House of the Parliament. If the proclamation is not approved by both Houses, it will expire in two months. The Proclamation is so approved by Parliament (by simple majority) shall be in operation for six months. However, it may be revoked in between or extended further by the Parliament.

#16

Financial Emergency (Article 360):Article 360 states that if the President is satisfied that a situation has arisen whereby the financial stability or the credit of India or any part thereof is threatened, President may declare a state of financial emergency.During the period such Proclamation is in operation, the executive authority of the Union extends to the giving of directions to any State to observe such canons

 of financial propriety as may be specified in the directions, any such directions may also include:A provision required the reduction of salaries and allowances of all or any class of person serving a State or the Union.A provision requiring all Money Bills or other Financial Bills to be reserved for the consideration of the President after they are passed by the legislature of the State.A Proclamation issued under Article 360 will remain in force for two months unless before the expiry of the period it is approved by both the Houses of the Parliament.A proclamation issued under Article 360 will remain in force for two months unless before the expiry of the period it is approved by both the Houses of the Parliament. Once approved it remains in force till revoked by the President. No emergency under Article 360 has been issued so far.

#17

Financial Emergency

The Article 360 of the Indian Constitution has the provision for imposing financial emergency when the President is convinced that the economy is vulnerable and the financial stability of the country is under threat. The Parliament has to approve financial emergency within two months. Such emergency remains enforced till it is revoked by the President.

******************************************************

READ MORE -----

👉पिता की संपत्ति में आपका अधिकार //हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956

👉CrPC  482 के तहत शक्ति आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने के लिए इस्तेमाल हो सकती है जो मंजूरी,तुच्छ मामलों या अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के लिए पहली नजर में बुरी है : सुप्रीम कोर्ट

----------------------------------------------------------------------------``

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अगर पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से कर रही हो गिरफ्तार, तो ये हैं आपके कानूनी अधिकार

अगर पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से कर रही हो गिरफ्तार, तो ये हैं आपके कानूनी अधिकार  ----     #1      अगर पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह न सिर्फ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता यानी CRPC का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय संविधान (Constitution)के अनुच्छेद (Article) 20, 21और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है. मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर पीड़ित पक्ष संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे Supreme Court जा सकता है. - --------------------------------------------------------------------------------  READ MORE ................... 👉 अब घर खरीदार ,रियल इस्टेट (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 2016 (रेरा )के साथ Consumer Forum.भी जा सकता है, 👉 घर में काम करने वाली पत्नियों की कीमत कामकाजी पतियों से बिल्कुल भी कम नहीं है। - सुप्रीम कोर्ट ---------------------------------------------------------------------------------   #2 पुलिस गिरफ्तारी से संबंधित कानूनों का विस्तार  ---- 1. CRPC की धारा 50...

प्रॉपर्टी के वारिस लोग नहीं बन सकते

प्रॉपर्टी के वारिस लोग नहीं बन सकते।   @   हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 :                 @ हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में एेसी कई स्थितियां हैं , जिसके तहत किसी शख्स को वसीयत पाने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है , या वह उसके लिए पहली पसंद नहीं होता। आइए आपको उन लोगों के बारे में बताते हैं जो कानून के मुताबिक प्रॉपर्टी के वारिस नहीं हो सकते। @सौतेला : जिस शख्स से प्रॉपर्टी पाने की उम्मीद है , अगर उससे रिश्ता वही रहता है तो जैविक संतान को प्राथमिकता दी जाती है। सौतेले वह बच्चे होते हैं , जिसके मां या बाप ने दूसरी शादी की है। एेसे मामलों में , पिता के जैविक बच्चों ( पिछली पत्नी से ) का प्रॉपर्टी पर पहला अधिकार होता है। संक्षेप में कहें तो जैविक बच्चों का अधिकार सौतेले बच्चों से ज्यादा होता है। @एक साथ मौत के मामले में : यह पूर्वानुमान पर आधारित है। अगर दो लोग मारे गए है...

major landmark judgments: of the Constitution of India

India's Constitution has been shaped by numerous landmark judgments over the years. Some of these rulings have significantly impacted the legal landscape of the country, interpreting and expanding the rights and provisions enshrined in the Constitution. Here are a few major landmark judgments: 1. Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973): This case is one of the most important constitutional rulings in India. The Supreme Court held that Parliament cannot amend the "basic structure" of the Constitution. This judgment established the doctrine of the "Basic Structure," which means that certain fundamental aspects of the Constitution cannot be altered by any amendment. 2. Maneka Gandhi v. Union of India (1978): This judgment expanded the interpretation of Article 21 (Right to Life and Personal Liberty). The Supreme Court held that the right to life and personal liberty includes the right to live with dignity and that any law affecting this right must be "re...