गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

पिता की संपत्ति में आपका अधिकार //हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956

 पिता की संपत्ति में आपका अधिकार

        
#1
(हिन्दू सक्सेशन एक्ट), 1956 के अनुसार, अगर पिता का स्वर्गवास बिना वसीयत बनाए हो जाता है तो एक बेटे या बेटी का अपने पिता की खुद से कमाई हुई संपत्ति पर वारिस के रूप में पहला अधिकार होता है। वारिस के तौर पर, एक व्यक्ति को पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा हासिल करने का कानूनी अधिकार भी होता है। 
#2
पैतृक संपत्ति के मामले में
  लेकिन नीचे दी गई कुछ विशेष स्थितियों में बेटा पिता की संपत्ति में से अपना हिस्सा नहीं ले सकता है।
हिंदू कानून के अनुसार, एक व्यक्ति को जन्म के साथ ही पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से का अधिकार मिल जाता है। पैतृक संपत्ति वह होती है जो पुरुष वंश की चार पीढ़ियों को विरासत में मिलती है। संपत्ति को दो शर्तों के आधार पर पैतृक माना जाता है - अगर पिता को उनके पिता से, मतलब दादा  से उनके देहांत के बाद विरासत में मिली हो ; या दादा के जीवित होते हुए भी उनके पैतृक संपत्ति का बँटवारा करने से विरासत में मिली हो । अगर पिता को संपत्ति दादा से उपहार के रूप में ली हो, तो वह पैतृक संपत्ति नहीं मानी जाती है। 
#3
खुद की कमाई संपत्ति के मामले में 
कानून के हिसाब से एक बेटे का अपने माता-पिता की खुद से कमाई संपत्ति पर कानूनी अधिकार नहीं होता है। हालाँकि, वह अपना हिस्सा माँग सकता है अगर वह संपत्ति बनाने में अपना सहयोग साबित कर दे । इसके अलावा, एक बेटे के लिए माता-पिता की खुद से कमाई संपत्ति में हिस्सा पाने का कोई मौका नहीं होता है अगर उसके पिता ने अपनी वसीयत में संपत्ति किसी और को दी हो, या दस्तावेज़ बनाकर भेंट दी हो। उसके माता- पिता उसे संपत्ति का इस्तेमाल करने दे सकते हैं लेकिन माता- पिता पर इसके लिए कोई दवाब नहीं होगा। इसके अलावा, पोते का उसके दादा की खुद से कमाई संपत्ति  पर कोई अधिकार नहीं होता है। 
अगर पिता संपत्ति उपहार में दें.
#4
     एक संपत्ति को पैतृक संपत्ति नहीं माना जाता है अगर वह पिता ने अपने बेटे को उपहार में दी हो। इसलिए, एक व्यक्ति अपने दादा के द्वारा पिता को उपहार में दी गई संपत्ति में अपने हिस्से का दावा नहीं कर सकता । ऐसी संपत्ति जो बेटे या बेटी को पिता से उपहार के रूप में मिली हो, वह उनकी खुद से कमाई संपत्ति बन जाती है। ऐसे मामलों में, पोते/पोतियों का ऐसी संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता जिसे उनके दादा ने अपने बेटे या बेटी को उपहार में दी हो, जो वे किसी और व्यक्ति को भी दे सकते थे। जब तक दादा इसे अपनी इच्छा से पैतृक संपत्ति नहीं बनाते तब तक ऐसी संपत्ति को खुद  से कमाई हुई संपत्ति माना जा सकता है।
#5
       बेटा अपने पिता  के जीवित रहते हए भी पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा माँग सकता  है। किसी भी सूरत में, आवेदक को संपत्ति में अपने हिस्से पर हक़ साबित करना होता है। हालाँकि, अधिनियम सौतेले बेटे    ( माता-पिता के मृतक साथी या किसी दूसरे साथी का बेटा, या इस तरह के कुछ मामलों में ) को पहला वारिस नहीं मानता।  

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👉👉CRPC  482 के तहत शक्ति आपराधिक कार्यवाही 

को समाप्त करने के लिए इस्तेमाल हो सकती है जो 

मंजूरी,तुच्छ मामलों या अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के 

लिए पहली नजर में बुरी है : सुप्रीम कोर्ट

👉👉पिता की संपत्ति में आपका अधिकार //

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956

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